हरिद्वार | वार्षिक शिशुवाटिका अखिल भारतीय परिषद बैठक एवं प्रशिक्षण का आयोजन 17-21 फरवरी 2024 तक सरस्वती शिशु मन्दिर, रानीपुर, हरिद्वार में किया गया। इस आयोजन में अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री गोबिन्द चंद्र महन्त, संयोजिका सुश्री आशा धानकी एवं सह संयोजक (श्री हुकुमचन्द मुवन्ता एवं श्रीमती नम्रता दत्त) तथा क्षेत्रीय संयोजक एवं सह संयोजक अपेक्षित थे। अपेक्षित 25 प्रतिभागियों में से 24 प्रतिभागी उपस्थित रहे। इनके अतिरिक्त विशेष आमंत्रित 4 सदस्यों में से 3 उपस्थित रहे। कुल संख्या 27 की रही।
बैठक की कार्यवाही का पठन श्री हुकुमचन्द मुवन्ता द्वारा किया गया। सुश्री आशा थानकी ने परिषद बैठक एवं प्रशिक्षण की प्रस्तावना रखते हुए बताया कि प्रतिवर्ष यह परिषद 5 दिनों के लिए बैठती है। 2004-05 से 2024 तक की इस यात्रा में पीढी बदल गई लेकिन मूल्य और परम्परायें स्थिर है। इस स्थिरता के लिए शिशुवाटिका में शिक्षण, प्रशिक्षण, शोध एवं प्रकाशन चारों क्षेत्रों में कार्य किया है। अ.भा. प्रशिक्षण केन्द्र, गांधीधाम गुजरात से देशभर में शिशु वाटिका अर्थात् शिशु शिक्षा की भारतीय शिक्षण पद्धति/अनौपचारिक शिक्षा का वातावरण बन रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में प्रारम्भिक बाल्यावस्था की शिक्षा में हमारी विचारधारा को स्वीकारा है। इस नाते अब हम न केवल अपने विद्यालय के शिक्षक/ प्रशिक्षक है बल्कि हमें राष्ट्र शिक्षक/प्रशिक्षक बनकर उभरना है।
विभिन्न परिपेक्ष्य में क्षेत्रीय वृत्तों की प्रस्तुति, तुलनात्मक चिन्तन एवं चर्चा हुई। प्रशिक्षण में 2 महत्वपूर्ण सैद्धांतिक विषयों पर चिल्ड्रन यूनिवर्सिटी गुजरात के पूर्व नियामक श्री दिव्याणु जी दवे द्वारा प्रकाश डाला गया- 1.भारतीय जीवन दर्शन और 2. पंचपदी शिक्षण पद्धति।
भारत का जीवन दर्शन आध्यात्मिक है। इसीलिए भारत में शिक्षा का अर्थ ही मुक्ति है। भारत की भौगौलिक संरचना ही स्वयं में आध्यात्भिता का कारक है, तभी तो यह देव भूमि कहलाती है। अतः भारतीय जीवन की इस आध्यात्मिकता को समझने के लिए इसकी भौगोलिक संरचना की अनुभूति करनी होगी और जीवन की अखण्डता, निरन्तरता और चक्रीयता को समझना होगा।
पंचपदी शिक्षण पद्धति में अपने वैशिष्टय के कारण ही भारत विश्व गुरु कहलाया। पाश्चात्यकरण के साथ साथ शिक्षक प्रशिक्षण में हरबर्ट की शिक्षण पद्धति का चलन आया। यह शिक्षण पद्धति की सामग्री पर केंद्रित है। अत यह इतनी प्रभावी नहीं। शिक्षा का केन्द्र बिन्दु छात्र है। अत शिक्षण पद्धति भी छात्र केन्द्रित (पंचकोशात्मक) ही होनी चाहिए। पंचपदी शिक्षण पद्धति के पद छात्र केन्द्रित है जो शिक्षा के मूल तत्व (शिक्षा शास्त्र, मनोविज्ञान एवं तंत्रिका तंत्र) से संबद्ध है। विस्तार से इन सभी विषयों पर क्रमशः 2-2 कालांशों में मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
पंचपदी के इस गहन विषय को सुनने उत्तराखण्ड के शिक्षामंत्री डा. धनसिंह रावत जी तथा प्राथमिक / माध्यमिक के शिक्षा अधिकारी भी दोनों कालांश में पूर्ण समय उपस्थित रहे। श्री धनसिंह जी ने उत्तराखण्ड शिक्षा विभाग में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में विद्या भारती के सहयोग एवं मार्गदर्शन की सराहना की।
देश में शिशुवाटिका में मातृभाषा के प्रयोग की स्थिति की जानकारी अभा संगठन मंत्री वाटिका प्रभारी श्री गोबिन्द महंत ने चर्चा की। भारतीयता को आधार बनाने के लिए शिशुवाटिका की आन्तरिक एवं बाह्य स्वरूप पर सुश्री आशा दीदी ने चर्चा के आधार पर बिन्दू निर्धारित किए। आचार्य प्रशिक्षण एवं अभिभावक प्रशिक्षण पर क्रमशः भुवन्ता जी एवं नम्रता जी ने चर्चा की। वाटिका के क्रियाकलापों का प्रत्यक्ष दर्शन एवं समीक्षा, शिशुवाटिका अभ्यासक्रम तथा आनन्द पुस्तक पर सुझाव लिए गए। समय पत्रक एवं दैनन्दिनी निर्माण (द्वारा चालीसा बेन, पश्चिम मध्य क्षेत्र) सीखाया गया। फाउडेशनल स्टेज (5+) के विषय पर श्री भरत भाई डोकई (मार्गदर्शक समर्थ भारत प्रकल्य) ने मार्गदर्शन दिया।
श्री गोबिन्द महंत के मार्गदर्शन एवं पू. वेदानन्द मृगु आश्रम के आशीर्वचन के उपरान्त वन्दे मातरम् के गायन के साथ बैठक समाप्त हुई। बैठक की सराहनीय व्यवस्था के लिए विद्यालय परिवार के साथ-साथ प्रांत संगठन मंत्री श्री भुवन जी श्री विजय एवं श्री विनोद का विशेष योगदान रहा।
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