श्रीमद्भगवद्गीता प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम
कुरुक्षेत्र। विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में श्रीमद्भगवद्गीता प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम के नौवें दिन ‘सुखी परिवार और गीता’ विषय का शुभारंभ माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। विषय को समझाते हुए डॉ. शाश्वतानंद गिरि ने कहा कि बुद्धि, विवेक से ही सुखी रह सकते हैं। किसी साधन से सुखी होना संभव नहीं है। जो आनंद किसी विषय से, किसी वस्तु से मिले, उसका नाम सुख है और जो सुख बिना किसी विषय के स्वयं अपने ही स्वरूप का हो, उसका नाम आनंद है। जीवन की, व्यक्ति की पहचान या व्यक्तित्व का परीक्षण बड़ी-बड़ी बातों से नहीं अपितु छोटी-छोटी बातों से होता है। उन्होंने कहा कि पीड़ा प्राकृत भी हो सकती है और परिस्थितिजन्य व स्वाभाविक भी, लेकिन दुख का संबंध अंतःकरण, मन से है। अध्यात्म विद्या सर्वात्मक बनाती है। धर्म अभय नहीं निर्भय करता है। वेदांत या ब्रह्मविद्या या अध्यात्म विद्या अभयदान करती है, क्योंकि अभय केवल आत्मा का स्वरूप हो सकता है। जहां भी भेद है वहां अभय संभव ही नहीं है।
भारतीय दर्शन, भारतीय चिंतन किसी को जड़ नहीं मानता। जो जड़ है उसमें भी हम चेतन का आह्वान करते हैं। जो सकारात्मक परम्पराएं हैं उन्हें इस भाव से निरंतर रखें कि वे हमारे पूर्वजों से आई हैं और फिर उनकी वैज्ञानिकता भी समझने की कोशिश करें। जब ब्रह्म ज्ञान हो जाता है तभी सूक्ष्म शरीर का नाश होता है। हमें अपने परिवारों को पुष्ट करना बहुत जरूरी है। सभी के परिवार पुष्ट होंगे तो ही हम उन्हें राष्ट्रीय चेतना से जोड़ सकते हैं, तभी राष्ट्र का एक कुटुम्ब का स्वरूप निर्मित हो सकता है। यदि भारत राष्ट्र कुटुंब के स्वरूप में आ जाए तो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ सिद्ध हो जाता है। विद्या भारती के राष्ट्रीय महामंत्री अवनीश भटनागर व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक डॉ. हुकम सिंह ने भी विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह, कृष्ण कुमार भंडारी, श्रीमती विष्णु कान्ता भंडारी आदि उपस्थित रहे।
श्रीमदभगवदगीता पाठ्यक्रम प्रमाण पत्र :कुल पंजीकरण 109
- ज्ञानार्जन एवं प्रमाण पत्र के लिए प्रतिभागी – 78
- ज्ञानार्जन के लिए प्रतिभागी – 31