महिला के लिए कुछ भी असंभव नहीं है : निर्मल पोपली
समाज के प्रत्येक वर्ग का विशेष महत्व है। पुरातन काल में प्रत्येक वर्ग का विशेष ध्यान रखा जाता था। सामाजिक समरसता के विषय में उन्होंने सांझा चूल्हा का वर्णन करते हुए कहा कि माता पिता बालकों को प्रेरित करें। सामाजिक समरसता किसी भी समाज की तरक्की का गुण होता है यदि कोई भी समाज विषमता से ग्रसित होता है, वह उन्नति नहीं कर पाता, यह विचार श्रीमति निर्मल पोपली जी, बालिका शिक्षा प्रमुख विद्या भारती उत्तर क्षेत्र ने दो दिवसीय (22 से 23 अप्रेल 2023) प्रांतीय ऑनलाइन महिला कार्यकर्ता कार्यशाला में रखे साथ ही उन्होंने कहा कि महिला के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। प्रतिदिन के कार्यों के द्वारा महिला पर्यावरण संरक्षण करती है। तुलसी का पौधा, आंवला, नीम पीपल आदि को हमारी संस्कृति में पूजा जाता है जो कि पर्यावरण संरक्षण का ही उदाहरण है।
डॉ ऋषि राज वशिष्ट जी-अध्यक्ष हिन्दू शिक्षा समिति कुरुक्षेत्र ने पर्यावरण संरक्षण विषय में अपने शब्द रखते हुए कहा कि यह आज के युग की हम सभी सामाजिक समरसता एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होकर स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकें। श्रीमती पांचजन्य बत्रा द्वारा समाज में कुटुंब का महत्व बताते हुए कहा कि परिवार किसी भी समाज का आधार है। परिवार के सभी सदस्यों का मिलजुल कर एक साथ रहना, सहयोगी बनना समाज के लिए उदाहरण है। किसी भी समाज की परिकल्पना कुटुंब के बिना असंभव है। पाश्चात्य सभ्यता का अंधाधुंध अनुसरण न करें। आधुनिकीकरण को अपनाते हुए, भारतीय संस्कृति की जड़ों को थामना आवश्यक है। उन्होंने विभिन्न उदाहरण देते हुए कहा कि आज के समाज में पाश्चात्यकरण और आधुनिकीकरण में अंतर है। दोनों के अंतर को समझना आवश्यक है। डॉ. अवधेश पांडे-म,मंत्री हिन्दू शिक्षा समिति कुरुक्षेत्र ने भी उपरोक्त बिंदुओं का समर्थन करते हुए कहा कि कुटुंब के विषय पर जितना चिंतन किया जाए उतना कम है। पुरातन काल में कभी इस विषय पर चर्चा की आवश्यकता ही नहीं पड़ी परंतु जैसे-जैसे समाज में पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव पड़ा वैसे वैसे इस विषय पर चर्चा की आवश्यकता भी बढ़ती गई। समय-समय पर परस्पर संवाद आवश्यक है। संवाद के अभाव में परिवार बिखर रहे है।
डॉक्टर प्रोमिला बत्रा प्रभा जी द्वारा बालक के विकास में महिला की भूमिका पर उद्बोधन देते हुए कहा कि जैसे-जैसे विश्व गांव की तरह हुआ उसका प्रभाव हमारे ऊपर सकारात्मक कम ऋण आत्मक अधिक हुआ है। बालक की अपनी पहचान आवश्यक है। बालकों के हृदय पक्के हो, उसके लिए प्रयास किया जाना चाहिए। बच्चों पर अपने सपने न थोपें। उनकी अपनी पहचान को जगह दे। अभिभावक बालकों के समक्ष उदाहरण बने। पढ़ाई लिखाई अहम है परंतु सब कुछ नहीं है। बच्चों में नकारात्मक भावना न जागे इसके लिए सदैव सकारात्मक प्रयास करते रहे। महिलाएं पुरुषों से अधिक मजबूत है। उन्हें अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता है। अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किसी और का कोई नुकसान ना करें। तर्क तो ठीक परंतु वितर्क होते ही परिस्थितियां बिगड़ जाती हैं। बालकों की रुचि को समझना आवश्यक है। इस और ध्यान दें।
श्री शेष पाल जी-प्रांतीय शैक्षिक प्रमुख ने मार्गदर्शन देते हुए कहा कि महिला के भावों का संवगो का परिवार के सभी कार्यों एवं सदस्यों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। बिखरना नहीं है निखरना है, इस बात पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि समय-समय पर ऐसे विषय सभी अभिभावकों, आचार्य एवं महिलाओं के समक्ष रखे जाने चाहिए ताकि सभी बालक के विकास में सहयोगी बन सके।

श्रीमती मंजू शर्मा जी के द्वारा किशोरावस्था में स्वास्थ्य की देखभाल विषय रखा गया जिसमें उन्होंने कहा कि समाज का मूल भाव जननी है। जननी के भाव सदैव आसपास के वातावरण पर प्रभाव डालते हैं। सच्चा सुख निरोगी काया है। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी निधि है। 10 से 19 वर्ष की आयु किशोरावस्था कहलाती है जिसमें शरीर के साथ-साथ अनेक मानसिक परिवर्तन भी होते हैं । माताओं और आचार्यों से निकटता न होने के कारण बालिकाएं पथ से भटक भी जाती है। इसके लिए आवश्यक है आचार्य मां के समान दायित्व का निर्वहन करें। शिक्षा को जीवन से जुड़े किशोरावस्था की उर्जा को किनारों में बांधना आवश्यक है यदि ऐसा न हुआ तो यही ऊर्जा विनाशकारी भी हो सकती है। आहार विहार का विशेष ध्यान आवश्यक है। इसके लाभ हानि बालिकाओं को बताई जाए। पौष्टिक भोजन–संतुलित भोजन के सेवन पर विशेष बल दिया जाए। बालिका का महत्व सोने के आभूषण के समान है। रिश्ते बनाए जाते हैं बनते नहीं हैं, इस और विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
श्री देव प्रसाद भारद्वाज-अध्यक्ष विद्या भारती हरियाणा जी ने मार्गदर्शन देते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बेसिक शिक्षा में इस विषय पर विशेष बल दिया गया है। सभी इस विषय का अध्ययन करें और कक्षा 10 तक इसे लागू करने का प्रयास करें। अंग्रेजी सीखें अंग्रेजियत नहीं। रटने की प्रथा को तोड़े समझ विकसित हो ऐसा प्रयास करें। पारिवारिक भाव के साथ किशोरावस्था के संभाल आवश्यक है। मां शब्द में ही आत्मीयता है जोकि आजकल लुप्त होता जा रहा है। हमारी पद्धति में रिश्तो के नाम है परंतु पाश्चात्य सभ्यता में ऐसा नहीं है। अपनी संस्कृति से जुड़े रहे और उन्होंने सभी वक्ताओं की तथा प्रतिभागियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि ऐसी कार्यशाला समय-समय पर आयोजित की जाए और इससे संबंधित अन्य विषय भी सभी के समक्ष आने चाहिए। अंत में श्रीमती राजविज- प्रांत उपाध्यक्षा जी के द्वारा आभार अभिव्यक्ति की गई। इस अवसर पर हरियाणा प्रांत प्रशिक्षण संयोजक श्री राम कुमार जी एवं सेवा संयोजक श्री सुभाष शर्मा जी का विशेष सानिध्य प्राप्त हुआ।
इस कार्यशाला में महिला प्रधानाचार्य एवं प्रबंध समिति के महिला कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। इस कार्यशाला में कुल 35 प्रतिभागी रहे।
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