Home दिल्ली अखिल भारतीय संस्कृत-शिक्षक प्रशिक्षण पंचदिवसीय आवासीय कार्यशाला – 2022

अखिल भारतीय संस्कृत-शिक्षक प्रशिक्षण पंचदिवसीय आवासीय कार्यशाला – 2022

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संस्कृत से ही एक भारत, श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना संभवः श्रीराम अरावकर जी

भाव की दृष्टि से नित्य नवीन है संस्कृतः चंद्र किरण जी

नई दिल्ली | श्रीराम अरावकर” जी ने संस्कृत की उपयोगिता बताते हुए कहा कि संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो प्राचीनता के साथ अर्वाचीन को सम्बद्ध कर सकती है, इसके माध्यम से एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना संभव है।

श्रीमान् उपेंद्र कुमार शास्त्री जी ने भाषा कौशलों को विकसित करने के लिए संस्कृत क्रीडा का अभ्यास कराया तथा आधुनिक युग में संस्कृत भाषा के लिए तकनीकी की आवश्यकता होती है इसके लिए प्रयोग में आने वाली टङ्कण विधि तथा उपयोगी एप्स का प्रशिक्षण प्रदान किया।

श्रीमान् चाँदकिरण सलूजा जी ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत सर्वप्रथम जो वाक्य हैं वह शिक्षा नीति को प्रभावित करता है। बालक का संपूर्ण विकास तभी संभव है, जब पंचकोशीय शिक्षा प्रणाली से छात्रों को अधिगम कराया जाए। संस्कृत काल की दृष्टि से प्राचीनतम हो सकती है, किंतु भाव की दृष्टि से नित्य नवीन है। शिक्षा प्रणाली के चार आधार स्तंभ हैं- ज्ञान हेतु शिक्षा, कार्य हेतु शिक्षा, मिलकर कार्य/रहने की शिक्षा, मनुष्य बनने की शिक्षा। उन्होंने बताया कि क्रिया के बिना ज्ञान भार ही रहता है अतः निरंतर क्रियाशील व्यक्ति ही लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम हो सकता है। संस्कृत भाषा प्राचीन है तो यह हमारा गौरव है संस्कृत भाषा नवीन उपलब्धि करा रही है, इसमें हमारा सम्मान है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का चतुर्थ अध्याय शिक्षण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण अध्याय हैं, जिसका निरंतर चिंतन करें क्योंकि शिक्षा प्राणदान प्रक्रिया है।

डॉ. मनमोहन शर्मा ने “गतिविध्यात्मकं शिक्षणम् अधिगमनञ्च” विषय पर पीपीटी के माध्यम से विषय को स्पष्ट किया तथा गतिविधि द्वारा शिक्षण कितना सहज और सरल हो जाता है इसका क्रियात्मक रूप प्रस्तुत किया।

डॉ. पारुल ने विद्यालयगत होने वाली समस्याओं तथा भाषागत समस्याओं को क्रियात्मक अनुसंधान के द्वारा निदान करने की बात कही, क्योंकि क्रियात्मक अनुसंधान समस्याओं का तत्काल निदान करता है और यह क्रियात्मक अनुसंधान कम समय में, कम धन व्यय में तथा विद्यालय में जो संसाधन है उन्हीं संसाधनों के माध्यम से शीघ्र प्रभाव देता है। इसके द्वारा कठिन से कठिन समस्या का तत्काल निदान हो जाता है और यह संवादात्मक सत्र बहुत ही प्रभाव पूर्ण रहा।

डॉ. प्रेम पनेरु जी ने “संस्कृतमय परिवेश” का व्यावहारिक पक्ष प्रस्तावित किया उन्होंने कहा कि हम विभिन्न प्रकार के सामाजिक व शैक्षिक परिवेश में रहते हुए संस्कृत में वातावरण उत्पन्न कर सकते हैं; क्योंकि हमारी मातृभाषा के अंतर्गत 50 से 60 प्रतिशत शब्द संस्कृत शब्द होते हैं, अतः संस्कृत के शब्दों का संग्रहण व वाचन सहज रूप से संभव है। विद्यालय में विविध प्रकार की गतिविधियों, संस्कृत सप्ताह आयोजन तथा छात्रों के मध्य सूचना संप्रेषण में संस्कृत वाक्यों का प्रयोग करें तो निश्चित रूप से संस्कृत में वातावरण संभव है।

कार्यशाला में विशेष आकर्षण के केंद्र बिंदु –

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को किस तरह अपने अध्यापन के साथ संबद्ध कर सकते हैं, इस प्रक्रिया का विधिवत् ज्ञान। शिक्षण के साथ-साथ विविध उपकरणों का निर्माण।

भाषा शिक्षण के साथ क्रीडा-विधि।

इस प्रशिक्षण कार्यशाला में माननीय गोविंद चंद्र महंत (संगठन मंत्री, विद्या भारती), श्रीराम अरावकर (अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री, विद्या भारती), श्रीमान् उपेंद्र कुमार शास्त्री (अखिल भारतीय संस्कृत संयोजक), श्रीमान् रवि कुमार (संगठन मंत्री, विद्या भारती, दिल्ली), पद्मश्री चमूकृष्ण शास्त्री (प्रतिष्ठित संस्कृत शिक्षाविद्), श्रीमान् चाँदकिरण सलूजा (निदेशक, संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान), श्रीमान् दिनेश कामत (संगठन मंत्री, संस्कृत भारती), श्रीमान् किशनवीर सिंह (अखिल भारतीय संस्कृत प्रभारी), श्रीमान् लक्ष्मी नरसिंह (अध्यक्ष, संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान), डॉ. मनमोहन शर्मा (प्रशिक्षक, संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान), डॉ. प्रेम पनेरु (प्रशिक्षक, संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान), श्रीमान् हर्ष कुमार ( विद्या भारती उत्तर क्षेत्र प्रशिक्षण प्रमुख) आदि का सान्निध्य सत्रानुसार प्राप्त हुआ। इस प्रशिक्षण कार्यशाला में 11 क्षेत्रों के सभी प्रांतों से 130 क्षेत्र प्रमुखों/प्रांत प्रमुखों/आचार्यों ने प्रतिभागिता ग्रहण की।

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