Calligraphy Experiment – Brahmapuri Adarsh Vidyamandir Chandpol Chauka, Jodhpur
सुलेख प्रयोग – ब्रह्मपुरी आदर्श विद्यामंदिर चांदपोल चौका, जोधपुर
जोधपुर | सुलेख का यह प्रयोग छात्रों के साथ किया गया। सभी छात्रों से सुलेख लिखवाया और उन्हें पंजिका बनाकर एकत्र कर रखा तदनंतर इन नियमों को समझाते हुए उनसे पुनः लिखवाया और तुलना की इस प्रकार उनकी रुचि विकसित करें पांचवी कक्षा तक नित्य सुलेख अनुलेख श्रुतलेख अभ्यास कक्षा में एक कालांश द्वारा होना चाहिए छोटे बच्चों को लिखते हुए देखना चाहिए कि वह अक्षरों में मात्राओं को उचित रीति से बनाते हैं या नहीं।
ब्रह्मपुरी आदर्श विद्यामंदिर चांदपोल चौका, जोधपुर में सुलेख का स्तर जानने के लिए समग्र अवलोकन करने की आवश्यकता थी अतः हमने सत्र के आरंभ में ही भैया बहनों से एक कागज पर एक तरफ 8- 10 पंक्तियों का लेख लिखवा कर स्तर का अवलोकन किया। अब उनके आकलन के आधार पर सभी कक्षाओं में सुलेख के नियमों का चार्ट लगवाया गया तथा तद अनुरूप अभ्यास करवाया गया। साथ ही साथ बालक जैसा देखता है वैसा ही लिखता है इस हेतु आचार्यों को भी सुलेख का अभ्यास करवाकर बोर्ड पर सुंदर लिखने के लिए प्रेरित किया गया। सत्र के आरंभ में जो हस्तलेख हमने सभी भैया बहनों का संग्रह किया था अब अभ्यास के उपरांत पुनः उसी पेज पर उस भैया बहन से वही लेखन उन्हें करवाया गया तथा तुलना की गई। इस तुलना में पाया गया कि 225 भैया बहनों में से 200 भैया बहनों का लेख ठीक हो गया। सुलेख के नियमानुसार व्यवस्थित हो गया है तथा उनमें भी 45 से 50 बच्चों का लेख बहुत सुंदर प्रदर्शन योग्य हो गया है। निरंतर अभ्यास से जब लेख अच्छा हो जाए तब उसका अलग प्रकार के कैलीग्राफी पेन के प्रयोग से कैलीग्राफी लेखन का भी अभ्यास करवाया गया जिससे चमत्कारी प्रभाव भैया बहनों के लेख में अभिभावकों में देखने को मिला। समाज में एक अलग पहचान बनी। प्रांत व क्षेत्र तक एक विशेष पहचान बनी।
एक नव विचार नवाचार को जन्म देता है अतः हमारा मन शुभ संकल्पों व विचारों वाला बने जिससे भैया बहनों को ऊर्जा मिले तथा वे भी कई नई कलाओं के स्वामी बन कर प्रतिष्ठा प्राप्त करते रहें। समय समय पर विद्यालय के सभी बच्चों को सामूहिक रूप से विशेष लेख वाले योग्य जनों को बुलाकर लेखन का प्रदर्शन करवाया गया। जिनमें कुछ पेंटर वह कुछ कलात्मक लिखने समय समय पर विद्यालय के सभी बच्चों को सामूहिक रूप से विशेष लेख वाले योग्य जनों को बुलाकर लेखन का प्रदर्शन करवाया गया। जिनमें कुछ पेंटर वह कुछ कलात्मक लिखने वाले कलाकार थे उनके लेखनी व कला से भैया-बहन बहुत प्रेरित होते हैं। वह उनका अनुकरण करने का प्रयास करने लगे तथा लेख सुंदर व कलात्मक होने लगा। जिन भैया बहनों के लेख में सर्वाधिक सुधार हुआ है उनको प्रोत्साहित करना भी अन्य को प्रेरणा देता है। फिर तद अनुरूप प्रयास प्रारंभ करते हैं कोई भी कला एक सतत प्रक्रिया है एकाएक कोई कलाकार नहीं हो जाता। निर्धारित निश्चित नियमित अनवरत अभ्यास से ही एक कला का स्वामी बन सकता है सच्चा साधक बन सकता है इससे भी बड़ी बात यह है कि उस व्यक्ति या भैया बहन की उस कला विशेष को सीखने के प्रति श्रद्धा है कि नहीं पता सर्वप्रथम सुलेख की प्रति उनका भाव निर्माण करना परम आवश्यक है। सुंदर लेख निश्चित रूप से सुंदर मान्यवर दे के निर्माण में सहयोगी होता है। अनुशासन में सदाचरण की ओर प्रवृत्त करता है विद्या भारती की एक पहचान हमारा सुलेख भी है उसकी ओर हमारा ध्यान पुनः आकृष्ट होते तो समाज में हमारे विशेष पहचान पुनः स्थापित हो इसी संकल्प के साथ हम सभी प्रयासरत हों।
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